ऐसा नहीं था हमारा भारत। मुरादाबाद के दुखद घटना पर आधारित लेख.. "बस कीजिये अब और बचाव नहीं। कड़े शब्दों में कहिए कि यह शर्मनाक है। और अगर नहीं कह सकते तो यह रोना मत रोइये कि सब्जी वाले से आधार कार्ड मंगा जा रहा है उसका नाम पूछा जा रहा है। साथ ही होशियार रहिये उन बुद्धिजीवियों से जो तुम्हें बैलेंस करना सिखा रहे हैं उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन तुम्हारा बहुत कुछ बिगड़ जायेगा। हमेशा यह कुछ लोग ही होते हैं जिनकी वजह से पूरी क़ौम बदनाम होती है, इन कुछ लोगों का अब और बचाव नहीं कर सकते। जब यह अज्ञानता और कट्टरता की पट्टी अपनी आंखों से खोलना ही नहीं चाहते, तो अच्छा यह है कि आप खुद को इनसे अलग कर लीजिए। जो डॉक्टर तुम्हारी जान बचाने के लिए आते हैं तुम उनकी ही जान लेने पर तुले हो। क्या इससे घटिया कुछ और हो सकता है?"
सरकारे बहरी ही होती है | वो विपक्ष और मीडिया है जो सरकारों तक जन की बात को ले जाता है | भारतीय जनतंत्र उस दौर में है जब की विपक्ष और मीडिया दोनों मरते प्रतीत हो रहे है | विपक्ष दिशाहीन है और मीडिया, पत्रकार घुटने के बल नहीं अपितु की पूर्णतया सत्ता चरणों में गिर चुके है| मंदी एवं ख़त्म होती नौकरियों, निजीकरण पर कोई चर्चा नहीं है| इस घटना पर एक शेयर ठीक बैठता है.... ""लगा के आग शहर को बादशाह ने कहा की उठा है आज शौक तमाशे का झुका कर सर सभी शाह परस्त बोल उठे हुजुर का शौक सलामत रहे शहर तो और भी बहुत है."" # प्रताप अखिलेन्द्र